बिलासपुर छतीसगढ़: उद्यमी बनकर आर्थिक स्वतंत्रता पाने का सपना देखनेवाली महिलाओं के जीवन सुधारने में माइक्रोफाइनेंस अहम् भूमिका निभा रहा है. छतीसगढ़ के बिलासपुर जिले की निवासी मनीषा साहू के उत्कर्ष की कहानी भी कुछ अलग नहीं है.
उनके पति चश्मे के कारखाने में कम करते थे. उनकी अल्प आय, चार सदस्यों के परिवार की बढती जरूरतें पूरी नहीं कर पाती थी. परिवार बड़ी मुश्किल से कुछ बचत कर पाता. इसकी वजह से उनके बच्चों की पढाई में भी कठिनाइयाँ आती थी. अतिरिक्त आय जुटाकर परिवार की मदद के लिए मनीषा को सिलाई कढ़ाई जैसे छोटे मोटे काम करने पड़ते थे.
परिवार के चुनौतीभरे आर्थिक संकटसे गुजर रहा था, तब जीवन ने एक अप्रत्याशित सकारात्मक मोड़ लिया. एक साल पहले, मनीषा ने इलाके की कुछ महिलाओं के बारे में सुना, जिन्होंने एकसाथ मिलकर एक गुट बनाकर कर्जा लिया और अपना व्यवसाय शुरू किया. वह उस गुट की सदस्योंसे मिली और उनके जरिये सेंट्रम माइक्रोक्रेडिट के कर्ज अधिकारी से संपर्क किया. जिन्होंने संयुक्त देयता सामूहिक कर्ज और उससे होनेवाले लाभ के बारे में विस्तार से जानकारी दी.
कुछ दिनों तक परिवार और मित्रों के साथ चर्चाओं का दौर चला, जिसके बाद उन्होंने एक कर्जदाता गुट के साथ जुड़ने का निर्णय लिया और अपना पहला 60,000 रुपयों का कर्जा लिया. इस कर्ज राशी से उन्होंने कागज की प्लेटें बनाने की मशीन तथा जरुरी कच्चा माल ख़रीदा. उन्होंने मशीन अपने घर पर ही बिठाई ताकि काम करते वक्त वह अपने बच्चों का भी ध्यान रख सके.
धीरे धीरे व्यवसाय बढ़ने लगा और वह आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो गयी और अपने परिवार का सहारा बनी. उनके व्यवसाय तथा अतिरिक्त आय के मौके उनके जीवन में खुशियाँ और आशाएं लेकर आये है.
आज मनीषा और उनका परिवार समाज में सम्मान की जिंदगी बिता रहे है. उन्हें ख़ुशी है के वह एक सफल उद्योजिका बन गयी है और साथ ही एक माँ के रूप में अपनी जिम्मेदारियां भी निभा सकती है. जरुरत के समय अन्य महिलाओं किओ तरह उसे मदद करने के लिए वह सेंट्रम माइक्रोक्रेडिट की ऋणी तथा आभारी है.
अपनी सफलता का श्रेय सेंट्रम माइक्रोफाइनेंस को देते हुए मनीषा कहती है, “मेरे सपने पुरे करने और मेरे जीवन बड़ा बदलाव लेन में मेरी मदद करने के लिए मैं सेंट्रम माइक्रोफाइनेंस के आभारी हूँ. मैं अपना व्यवसाय और बढ़ाना चाहती हूँ और यह महामारी ख़तम होने के बाद बच्चों की अच्छी स्कुल में भेजना चाहती हूँ.”