वट मूल स्थित ब्रह्मा, वट मध्ये जनार्दन
चटाये तु सिवोदेवः सावित्री वट संप्रित……
बर के रुख में देवी-देवता मन रथे, एकरे र बट वर पेड़ ल देवता रूख मानके पूजा कर, पानी चढ़ायें, बरके जरी म ब्रह्मा मझोत में बिस्नु अऊ बरो ( पेड़ की दाढ़ी) म सावित्री देवी के निवास है, रूख राई म वर, पीपर, लीम बेल, परसा, महा, कहा, सरई, सागौन, इमर, आमा, अमली, मनखे वर ओखद अमृत हवा-पानी देथे, बिसहर वायु ले बचायें चातावरन सुद्ध सफ्फा करथे धाम में छांव, बरसात में छाया, जाड़ में बाँधरा, बीमार बर फौक में दूध, बलासा म पुस्टई, बरौ म सोभा। कथं वर तरी सती सावित्री अपन सत पुत्र परताप ले अपन सेंदुर सोहाग मेरे सत्यवान ल जिया डारे रहिस, एकरे बर जेठ अमावस के वट सावित्री बरसाईत बर के साइत निरजला उपवास रथे अऊ ब्रह्मा, जम देवता, सावित्री के संग पर पेड़ के सूत लपेट के भांवर पारर्थ… बर देवता के चौदह भांवर फेरी सूत लपेट के पूजा करय… कई इन नोनी मन एक सौ आठ फेरी लेये.. अऊ पिपरमेंट, रेवड़ी, चाकलेट चढ़ा के चोचला कर… अवैधव्यं च सौभाग्य में देहिल मय सुबते. मतरा ले अरथ देना चाही, बर के जरी म माटी पानी खचित इजरय, भीजे चना, रूपिया, सोहाग के झपुलिया सौभाग्य पिटारी-सेंदूर, टिकली, काजर-चूरी, साड़ी लुगरा, गहना गरिया अपन सासु-सास ल देके पांव पर असीस ओली म झोकय एकर एकठन किस्सा हावय मंदू देस के राजा अस्वपति नाव के रहिस, राजा के कौना लड़का पिचका नई रहिस, राजा बड धर्मात्मा रहिस फेर संतान बर जप करिस त एक ठन नोनी जनमिस, नोनी के नाव सावित्री रखे गईस, जन नोनी बाढ़ के बिहाव लाइक होस.. त सावित्री सवागे स्वयंबर बर छोट बर निकरिस, सत्यवान् अपना अंधरा दाई-ददा के सेवा करय… ओला देखके सावित्री सत्यवान संग बिहाव करे बर संकलप कर लेईस.. जब नारद मुनी ल गम मिलिस… त नारद राजा ल बतावत है के सत्यवान् बने गुनी है, फेर ओकर अवरदा कमती है… याने एक बछर ओकर जिनगानी है. फेर सावित्री जुच्छा हाथ हो जाही नारद मुनी के वचन पहली बेर ले सावित्री वर असत होय है। दूसर बरसती हव करके… निहीं मानिस हिंदू कड़ना एक्के बर सेंदूर सोहाग (लेये…. सेंदूर के छुआ एक बार.. तिरिया तेल हमीर हठ च न दूजी बार… राजा जंगल में जाके कड़ना दान दाइज डोर सहित कर देईस अब सती सावित्री बिहान ले अपन सास-ससुर पति के सेवा कर… बछर पूरे लागिस त सावित्री उपास रहिके अपन धनी संग जंगल लकड़ी काटे घर गईस सत्यवान् टंगिया घर के रुख में चद्रिस के चक्कर आगे…मूह पौरा म व्याकुल सत्यवान सावित्री के केरा म ढलंग गे… योती सत्यवान् के चांडर पुरिस… के साच्छा जमराज भईसा के असवार आगे अऊ सत्यवान के जीव रक्छाहू (दक्षिण) कती ले के चल दिहिस फेर सती चलाय पापा पाय लागिस तब जमराज बरदान देके लहुटे बर कहिस …. पहिली वरदान सास-ससुर के आंखी दिख जाय. तभी ले सती जमराज ल नई छोडत है…. फेर दूसर वरदान मांगे पर कहिसत सती अपने ससुर के राजपाट मांगिस… ये हूं ल पार्क जमराज के पाछू सती जावत है तिरिया हठ देखके… जमराज तीसर वरदान देहे बर तियार होगे…. मैं… मैं मोर धनी ले सौ बेटवा के दाई बने चाहत हो। अरे अरे सती सतयंतिन सच्ची अऊ नारद के वचन लबारी…. एकरे बर चार चूरी बर, सेंदूर सोहाग बर, देस के सुवारी अपन धनी बर- पति के जीवन बर- वट सावित्री के निरजला उपास रहय।
डॉ. पालेश्वर प्रसाद शर्मा
विद्यानगर, बिलासपुर छ.ग.
Fri May 19 , 2023
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