बिलासपुर।विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार की कांग्रेस पार्टी में विभिन्न स्तर पर समीक्षा शुरू हो गई है ।दिल्ली, रायपुर के साथ ही जिला स्तर पर भी हार के कारण ढूंढे जा रहे है ।आरोप ,प्रत्यारोप भी शुरू हो गया है ।सवाल यह है कि कांग्रेस के पूरे कुएं में भांग घुली हुई है तो पार्टी के प्रति निष्ठावान किसे माना जाए ?प्रत्येक विधानसभा में ऐसे कांग्रेसियों की बड़ी संख्या है जो भीतरघात किए है ।इसके कारण अनेक है लेकिन ज्यादातर भाजपा से सेट हो गए थे इतना ही दूसरे विधानसभा में रहकर भी अपने गृहनगर के पार्टी प्रत्याशियों को हराने के लिए पैसा और पूरी ताकत भी लगाए है। जिले के मस्तूरी विधानसभा क्षेत्र ही एक मात्र ऐसी सीट रही जहां से कांग्रेस प्रत्याशी ने भीतरघात के बाद भी रणनीति के तहत चुनाव जीत के दिखाया ।लगभग सारी सीटो पर दोनो प्रमुख दलों ने पैसा पानी की तरह बहाया । कई विधानसभा में तो 15, 15 करोड़ रुपए तक खर्च करने की चर्चा है ।प्रदेश कांग्रेस कमेटी अभी सिर्फ नोटिस जारी कर रही है ।बड़े नेताओ के खिलाफ जो आरोप लग रहे है वह दूर तलक तक जाएगी ।जिला काग्रेस कमेटी ग्रामीण (बिलासपुर ) के अध्यक्ष विजय केशरवानी जिले में पार्टी की हार की समीक्षा क्या करेंगे वे खुद चुनाव हार गए है । उन्हें तो नैतिकता के नाते पद से इस्तीफा दे देना चाहिए।हार की जिम्मेदारी किसी एक पर थोपने के बजाय बूथ स्तर के कार्यकर्ता से लेकर संगठन के पदाधिकारी और प्रत्याशी को सामूहिक रूप से लेना चाहिए ।बिलासपुर के फूल छाप कांग्रेसी तो कभी भी सुधरने वाले नही है ।पहले के फूल छाप कांग्रेसी उम्रदराज होने जा रहे है उसकी जगह अब युवा और अधेड़ कांग्रेसी ले रहे है ।अब जबकि विधानसभा चुनाव में हार हो चुकी है और कांग्रेस सत्ता से बाहर गई है ऐसे में तमाम उन पदों पर जिसमे अभी तक कांग्रेसी बैठे है उन्हे पद से हटाने की शुरुआत भी शीघ्र होगी ।महापौर, सभापति,जिला पंचायत अध्यक्ष ,जिला सहकारी केंद्रीय बैंक के अध्यक्ष ,मार्क फेड चेयरमैन,नगरपालिका,नगर पंचायतों के अध्यक्ष समेत तमाम पदधारी कांग्रेस नेता पदों से हटा दिए जायेंगे ।
ऐसा क्यों ?ये अजूबा नही तो और क्या है? विधानसभा चुनाव के नतीजे में बड़े बड़े मठाधीशों का मठ जनता ने उजाड कर रख दिया है ।भाजपा के हिंदुत्व की आंधी ने सिर्फ 54 विधानसभा में ही अपना जलवा क्यूं दिखाया और 35 विधानसभा क्षेत्रो में हिंदुत्व की आंधी का असर क्यों नहीं पड़ा इस का कारण जानना तो बनता है ।कांग्रेस के सारे ब्राम्हण प्रत्याशी सचमुच में हारे या उन्हे हराया गया?मुख्यमंत्री पद के दावेदार कांग्रेस के प्रत्याशी (भूपेश बघेल को छोड़)कैसे हार गए ? क्या इसकी भी समीक्षा होगी? बात अजूबे की हो रही तो विधानसभा सीटो और परिणाम को एक लाईन से देंखे तो अजीब लगेगा ।शुरुआत बिलासपुर से करते हुए उससे लगे बिल्हा और बेलतरा को देखे फिर तखतपुर,मुंगेली, लोरमी,पंडरिया,कवर्धा,राजनांदगांव के नतीजे देखें ये सब एक लाईन से एक के बाद एक है इन सभी सीटों पर भाजपा को जीत मिली है ।कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला ।अब बिलासपुर से करीब 20 किलोमीटर दूर मस्तूरी विधानसभा से शुरुआत करें ।मस्तूरी,पामगढ़,चांपा,सकती,जैजेपुर,चंद्रपुर,और कोटा सीट जहां भाजपा का खाता नहीं खुला और सारी सीटो पर कांग्रेस की जीत हुई है न अजूबा ।इसे कांग्रेस की गुटीय राजनीति की दृष्टि से देंखे तो विधानसभा अध्यक्ष डा चरण दास महंत का दबदबा दिखता है ।महंत के प्रभाव वाले विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा की न तो दाल गली और न ही हिंदुत्व की कथित आंधी चल पाई जबकि टी एस सिंहदेव के सरगुजा क्षेत्र में कांग्रेस का सुपड़ा साफ हो गया और स्वयं श्री सिंहदेव भी चुनाव हार गए ।ऐसे में डा चरणदास महंत कांग्रेस के एक प्रभावी नेता के रूप में उभरे है ।पूरे प्रदेश में भाजपा की सत्ता में शानदार वापसी के इस दौर में भी डा चरणदास महंत के क्षेत्र में कांग्रेस को मिली बड़ी सफलता को देखते हुए विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का या फिर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद की महती जिम्मेदारी डा महंत को दी जा सकती है ।वर्तमान हालात में और कांग्रेस की डूबती नैया को बचाने डा महंत को बिलासपुर जिले में भी निष्ठावान ,पार्टी के प्रति समर्पित और जमीनी कार्यकर्ताओं की अपनी टीम बनानी होगी साथ ही ऐसे निकम्मे ,दरबारी ,और सिर्फ आगे पीछे घूमते हुए अपनी स्वार्थ सिद्धी करते आ रहे लोगो को त्यागना होगा क्योंकि ऐसे लोग जो डा महंत के नाम पर टिकट पाते है मगर उनके हारने पर डा महंत पर हार का ठीकरा फोड़ा जाता है ।बिलासपुर में कांग्रेस और फूल छाप कांग्रेसियों को ठीक करने एक बड़े मुखिया की निहायत जरूरत है । एक समय था जब बिलासपुर में राजेंद्र प्रसाद शुक्ला,चित्रकांत जायसवाल, बी आर यादव ,अशोकराव ,बंशीलाल धृत लहरे,बलराम सिंह ठाकुर जैसे कद्दावर नेता थे जो कांग्रेस के अभिभावक के रूप में थे ।इन नेताओ के एक एक कर चले जाने के बाद कांग्रेस में दिशा देने वाले समर्पित नेताओं की कमी है इसीलिए फूल छाप कांग्रेसी नेताओ की संख्या बढ़ गई है ।बिलासपुर जिले में कांग्रेस के गिरते जनाधार को ठीक करने के लिए अभिभावक के रूप में वरिष्ठ और निर्विवाद नेता की जरूरत है और इसकी भरपाई करने के लिए डा महंत के सामने यह बेहतर अवसर है ।